गर अरमानों के पंख होते , जमीं पर पैरों के निशान ना होते
होती पंखुण्डियों की सरसराहटे
हर फलक पर नए सपनो की आहटें ।
गर अरमानों के पंख होते, आँखों में उम्मीदों के अश्क़ न होते
हर तरफ होते मंज़िलों के कारवाँ
लंगरों बिन कश्तियों के काफ़िले ।
गर अरमानों के पंख होते ,क्या हम किसी के करीब होते ?
मन मचलते चल पड़ते नए साहिल की ओर ,
क्या थमाते हम किसी को अपने जीवन की डोर ?
होती पंखुण्डियों की सरसराहटे
हर फलक पर नए सपनो की आहटें ।
गर अरमानों के पंख होते, आँखों में उम्मीदों के अश्क़ न होते
हर तरफ होते मंज़िलों के कारवाँ
लंगरों बिन कश्तियों के काफ़िले ।
गर अरमानों के पंख होते ,क्या हम किसी के करीब होते ?
मन मचलते चल पड़ते नए साहिल की ओर ,
क्या थमाते हम किसी को अपने जीवन की डोर ?
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