अरे ओ समय ! ज़रा बताओ ना ! कराची का बचपन कैसा होता ?
दादी माँ की उन गलियों में , रहते तो कैसा होता ?
जो होती ना सरहद , ना बटता हिंदुस्तान
अमन के एक मुल्क में, बचपन कैसा होता ?
अगर खुंभ होता सिंधु किनारे,
तो पुलाव पकोड़े का स्वाद कैसा होता ?
क्या यूँ ही गिरती है बारिश की फ़ुहार ,
जहाँ है दादी की कहानियों का संसार ?
ज़रा बताओ न समय , कराची का बचपन कैसा होता?
दादी माँ की गलियों में, रहते तो कैसा होता ?
जो होती गर्मियाँ , तो कश्मीर की ठण्ड सेंकते
बिना तारों के, स्वर्ग कैसा होता ?
क्या यूँ ही पतझड़ की झड़ियां हैं लगती
जहाँ दादी की यादें हैं बसती ?
ज़रा बताओ न समय , कराची का बचपन कैसा होता?
दादी माँ की गलियों में, रहते तो कैसा होता ?
दादी माँ की उन गलियों में , रहते तो कैसा होता ?
जो होती ना सरहद , ना बटता हिंदुस्तान
अमन के एक मुल्क में, बचपन कैसा होता ?
अगर खुंभ होता सिंधु किनारे,
तो पुलाव पकोड़े का स्वाद कैसा होता ?
क्या यूँ ही गिरती है बारिश की फ़ुहार ,
जहाँ है दादी की कहानियों का संसार ?
ज़रा बताओ न समय , कराची का बचपन कैसा होता?
दादी माँ की गलियों में, रहते तो कैसा होता ?
जो होती गर्मियाँ , तो कश्मीर की ठण्ड सेंकते
बिना तारों के, स्वर्ग कैसा होता ?
क्या यूँ ही पतझड़ की झड़ियां हैं लगती
जहाँ दादी की यादें हैं बसती ?
ज़रा बताओ न समय , कराची का बचपन कैसा होता?
दादी माँ की गलियों में, रहते तो कैसा होता ?