Saturday, April 30, 2016

अरमान |

गर अरमानों के पंख होते , जमीं पर पैरों के निशान ना होते
होती पंखुण्डियों की सरसराहटे
हर फलक पर नए सपनो की आहटें ।

गर अरमानों के पंख होते, आँखों में उम्मीदों के अश्क़ न होते
हर तरफ होते मंज़िलों के कारवाँ
लंगरों बिन कश्तियों के काफ़िले  ।

गर अरमानों के पंख होते ,क्या  हम किसी के करीब होते ?
मन मचलते चल पड़ते नए साहिल की ओर ,
क्या थमाते हम किसी को अपने जीवन की डोर ?